Tuesday, February 21, 2017

राजनीति पर ब्यंग

एक सज्जन वनारस पहुचे की एक लड़का दौड़ते आया... मामा जी मामा जी.. लड़के ने लपक के चरण छुवे, बोले तुम कौन? अरे आप ने मुझे पहचाना नहीं, मै मुन्ना, वो सोचने लगे, हा मुन्ना वही मुन्ना... खैर कोई बात नहीं इतने साल भी तो हो गए, खैर मामा जी आप यहाँ कैसे??? मैं बस यही हु आजकल, अच्छा!!! मामा जी अपने भांजे के साथ वनारस घुमने लगे, चलो कोई साथ तो मिला, कभी इस मंदिर कभी उस मंदिर, घूमते घूमते पहुचे गंगा घाट, सोचे नहा ले, क्यों मुन्ना नहा ले? जरुर नहाइए मामा जी, वनारस आये हैं और नहायंगे नहीं ये कैसे हो सकता हैं, मामा जी ने गंगा में डुबकी लगायी... हर हर गंगे...बाहर निकले तो सामान गायब, कपडे गायब, लड़का मुन्ना भी गायब, मुन्ना ऐ मुन्ना ऐ मुन्ना मामा जी चिल्लाये. मगर मुन्ना वहां हो तब मिले. वे तौलिया लपेट कर खड़े रहे. क्यों भाई साहब आपने मुन्ना को देखा हैं? कौन मुन्ना? वही जिसके हम मामा हैं... मैं समझा नहीं. अरे वही जिसके हम मामा हैं वो मुन्ना. वे तौलिया लपेटे यहाँ से वहां दौड़ते रहे. मुन्ना नहीं मिला...

भारतीय नागरिक और वोटर के नाते हमारी यही स्थिति हैं मित्रो. चुनाव के मौसम में कोई आता हैं और हमारे चरणों में गिर जाता हैं, मुझे नहीं पहचाना. मैं चुनाव का उम्मीदवार, होने वाला MP. मुझे नहीं पहचाना???

आप प्रजातंत्र की गंगा में डुबकी लगाते हैं, बाहर निकलने पर आप देखते हैं की वो शख्स जो कल तक आपके चरण छूता था आपका वोट लेकर गायब हो गया, वोटो की पूरी पेटी ही ले कर भाग गया... समस्याओ के घाट पर हम तौलिया लपेटे खड़े हुवे हम सब से पूछ रहे हैं क्यों साहब वो कहीं आपको नजर आया..?? कौन? अरे वही जिसके हम वोटर हैं, वही जिसके हम मामा हैं, पांच साल ऐसे ही तौलिया लपेटे घाट पर खड़े खड़े ही बीत जाते हैं...

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